Top Ad unit 728 × 90

Breaking News

random

यह शर्मिंदगी की बात है कि देश के छात्र असमंजस में हैं, महामारी और लॉकडाउन ने उनके सपनों को पीछे धकेल दिया है https://ift.tt/3gN8uGf

कोरोना की वजह से छात्र समुदाय बहुत परेशान है। अपनी शिक्षा पर बहुत समय, मेहनत और पैसा खर्च करने के बाद उन्हें अपनी योजनाएं बिगड़ती दिख रही हैं। साथ भी भविष्य अनिश्चित हो गया है। महामारी और फिर लॉकडाउन ने उनके सपनों को पीछे धकेल दिया है।

ऐसे में उन्हें इस असमंजस में डालना और भी बुरा है कि वे सेहत चुनें या अपना अकादमिक भविष्य। शर्मिंदगी की बात है कि अभी इसी स्थिति का सामना नेशनल एलिजिबिटी एंट्रेंस टेस्ट (नीट) और जॉइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (जेईई) की तैयारी कर रहे छात्रों को करना पड़ रहा है, जिनकी परीक्षाएं इस महीने होनी हैं।

वैज्ञानिक कहते हैं कि अभी भीड़ से बचना चाहिए

नीट और जेईई पहले अप्रैल और मई में होनी थीं, लेकिन दो बार आगे बढ़ाई जा चुकी हैं। इसका मतलब सरकार ने सोचा कि जब भारत में 50 हजार कोरोना मरीज थे, तब इन बड़ी परीक्षाओं को आगे बढ़ाना सही था, लेकिन अब जब कोरोना के मामले 36 लाख के पार जा चुके हैं, सरकार को परीक्षा हॉल में हजारों छात्रों की भीड़ इकट्‌ठा करना सही लग रहा है।

यह अतार्किक और खतरनाक है। कोविड-19 की वैज्ञानिक समझ कहती है कि मौजूदा स्थिति में बड़े आयोजन नहीं करने चाहिए, भीड़ से बचना चाहिए और वायरस को फैलने से रोकना चाहिए। यह स्वाभाविक है कि जनस्वास्थ्य के नाम पर नीट और जेईई वैयक्तिक रूप से नहीं होनी चाहिए।

केरल से भी कुछ सीख नहीं लिया

हमने पहले भी भीड़ का नतीजा देखा है, जब केरल इंजीनियरिंग, आर्किटेक्ट एंड मेडिकल (केईएएम) परीक्षाएं जुलाई में हुई थीं। मैंने संक्रमण फैलने के जोखिम को लेकर चिंता जताते हुए केरल के मुख्यमंत्री को चिट्‌ठी लिखी थी और परीक्षा आगे बढ़ाने का निवेदन किया था। मेरा निवेदन अस्वीकार किया गया और आपदा शुरू हो गई। सोशल डिस्टेंसिंग के लिए प्रयास नहीं किए गए और परीक्षा में शामिल होने वालों की संख्या सीमित न करने के कारण केंद्रों पर भारी भीड़ रही। इससे वहां कोविड-19 मामलों में तेजी से बढ़त आई।

नीट-जेईई होने से भयावह स्थिति हो सकती है
नीट-जेईई तो और बड़े स्तर पर होंगी। करीब 25 लाख छात्र पंजीकृत हैं। इससे केईएएम परीक्षा के आयोजन से भी कई गुना बुरी और भयानक स्थिति का पूर्वाभास होता है। नीट-जेईई सितंबर में होनी ही नहीं चाहिए। इन्हें कम से कम नवंबर, दीवाली के बाद तक के लिए आगे बढ़ाना चाहिए था।
अगर आगे की यह तारीख व्यवहारिक नहीं लगती, तो सरकार का यह कहना सही है कि छात्रों पर पूरा अकादमिक वर्ष बर्बाद करने का दबाव नहीं बना सकते। ऐसे में मेरा मत है कि छात्रों और परीक्षा लेने वालों, दोनों के लिए ही व्यवहारिक, सुरक्षित और सम्मानजनक तरीका यह होगा कि परीक्षाएं घर से हों।

इससे छात्रों को अपने घर की सुरक्षा में परीक्षा देने मिलेगी। साथ ही परीक्षा केंद्रों पर भीड़ इकट्‌ठी नहीं होगी, जिसके कोरोना के ‘सुपर स्प्रैडर’ बनने की आशंका रहती है। जो छात्र किसी कारण से घर से परीक्षा नहीं दे सकते, सरकार को उनके लिए ऑनलाइन परीक्षा की सुविधा वाले टेस्टिंग सेंटर बनाने चाहिए थे। ऐसे छात्रों की संख्या कम ही होगी इसलिए ऐसे केंद्रों पर सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना आसान होगा और संक्रमण का जोखिम कम होगा।

स्वाभाविक है कि परीक्षा देने वाले के अकादमिक हुनर को आंकने के लिए परीक्षाओं को फिर से डिजाइन करना पड़ता, ताकि यह नई परिस्थितियों में सही बैठ पाएं। जिन कौशलों की जांच की जा रही है, वे सामान्य परीक्षा से अलग होंगे। इसमें छात्रों के घर में उपलब्ध अध्ययन और संदर्भ सामग्रियों को ध्यान में रखना होगा। इस परीक्षा को रटने पर आधारित परीक्षा से हटाकर छात्रों के तथ्यों को याद करने और तर्क तथा विश्लेषण की क्षमता पर लाना होगा।
यह बड़ा बदलाव शायद परीक्षा लेने वालों के लिए चुनौती हो, जो पीढ़ियों से एक ही तरह से परीक्षा ले रहे हैं। इससे छात्रों को भी कुछ परेशानी हो सकती है, जो पारंपरिक तरीकों से ही परीक्षा देते आए हैं। लेकिन इस महामारी ने हमें अपने सारे अनुमानों पर सवाल उठाने और बिल्कुल नए तरीके अपनाने पर मजबूर कर दिया है। अभी हमेशा की ही तरह काम करने में काफी जोखिम और समस्याएं हैं और नीट तथा जेईई के आयोजन में तो निश्चित तौर पर ऐसा ही है।

छात्रों ने कड़ी मेहनत की, अब उनके सेहत से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए
जैसा कि महामारी के पूरे विध्वंस के दौरान होता रहा है, परीक्षा के आयोजन की पहेली के लिए कोई सही समाधान नहीं है। हालांकि, घर से परीक्षा के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि जिन हजारों-लाखों छात्रों ने अपने सपनों को हासिल करने के लिए इतनी कड़ी मेहनत की है, आखिरी समय में उनकी सेहत से समझौता न हो।

सरकार को अब भी इस स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करना चाहिए। महामारी के चरम पर अदूरदर्शी और बिना सोचे-समझे लिए गए फैसले को सीखने की चाहत रखने वालों के उजले भविष्य के रास्ते में बाधा नहीं बनना चाहिए। हमें अपने देश की खातिर, अपने भविष्य के निर्माताओं और नायकों को सुरक्षित रखना चाहिए। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
शशि थरूर, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/32JkGCU
यह शर्मिंदगी की बात है कि देश के छात्र असमंजस में हैं, महामारी और लॉकडाउन ने उनके सपनों को पीछे धकेल दिया है https://ift.tt/3gN8uGf Reviewed by Ranjit Updates on September 01, 2020 Rating: 5

No comments:

Please don't tag any Spam link in comment box

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner