Top Ad unit 728 × 90

Breaking News

random

बिहार में 2015 के पहले जदयू बड़े भाई की भूमिका में होती थी, लेकिन इस बार भाजपा छोटे भाई की भूमिका में रहना नहीं चाहती https://ift.tt/2ZN153M

बिहार में चुनाव की तारीखों की घोषणा अभी भले नहीं हुई है लेकिन सियासी सरगर्मी अपने उफान पर है। कहीं सीटों को लेकर दावेदारी है तो कहीं गठबंधन का पेंच फंसा है। कोई अपनी जीती हुई सीट छोड़ने को तैयार नहीं है तो कोई मुश्किल सीटों पर लड़ने से बच रहा है। जिसका जहां वोट बैंक है, उसके आधार पर अपनी जोर आजमाइश कर रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भले कह रहे हैं कि एनडीए में सबकुछ ठीक है लेकिन लोजपा ने जिस तरह का रूख अख्तियार किया है, खासकर के जदयू के खिलाफ उससे लगता है कि कहीं न कहीं सीटों को लेकर पेंच जरूर है। आखिर ऐसा क्यों हैं इसे समझने की कोशिश करते हैं...

दरअसल 2015 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में थोड़ा अलग और दिलचस्प था। इस चुनाव में वर्षों के यार जुदा हो गए थे और पुराने धुर विरोधी एक हो गए थे। 20 साल बाद लालू और नीतीश एक साथ मिलकर महा गठबंधन(जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी) के रूप में चुनाव लड़ रहे थे जबकि दूसरी ओर भाजपा, लोजपा, रालोसपा और हम पार्टी मिलकर उनका मुकाबला कर रही थीं। चुनाव परिणाम घोषित हुए तो महा-गठबंधन को बहुमत मिला, सरकार भी बनी लेकिन दोनों का साथ ज्यादा दिन नहीं चल सका और जुलाई 2017 में नीतीश महा-गठबंधन से अलग होकर फिर से एनडीए में आ गए। इस बार के चुनाव में जदयू, भाजपा, लोजपा और हम पार्टी साथ हैं तो वहीं रालोसपा एनडीए से अलग होकर महा-गठबंधन का हिस्सा हो गई है।

52 सीटों पर जदयू और भाजपा में सीधी टक्कर थी

2015 के पहले जदयू बड़े भाई की भूमिका में होती थी लेकिन इस बार भाजपा छोटे भाई की भूमिका में नहीं रहना चाहती है। राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों दल बराबर- बराबर सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं। अगर इस पर बात बन भी जाए तो मुश्किल यह है कि लोजपा और दूसरी सहयोगी पार्टियों को कितनी सीटें दी जाए।

अगर सीटों का बंटवारा हो भी जाए तो कौन किस सीट से लड़ेगा, इस मसले को सुलझाना आसान नहीं होगा। क्योंकि पिछले चुनाव में 52 सीटों पर जदयू और भाजपा में सीधी टक्कर यानी यहां दोनों पार्टियां पहले और दूसरे नंबर पर थीं। इनमें से 28 जदयू और 24 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं। 22 सीटों पर तो हार जीत का अंतर 10 हजार से भी कम था। जबकि जदयू और लोजपा 22 सीटों पर आमने- सामने थीं, इनमें से 21 पर जदयू को जीत मिली थी। इस बार लोजपा की पूरी कोशिश है कि उसे कम से कम वो सीटें तो मिले ही जिस पर पिछली बार उसने चुनाव लड़ा था, लेकिन मुश्किल यह है कि जदयू अपनी जीती हुई सीटें इतनी आसानी से कैसे देगी।

आखिरी बार 2010 में भाजपा और जदयू एक साथ लड़ी थीं। उस वक्त भाजपा ने 102 और जदयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से 115 पर जदयू को और 91 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी।

14 सीटों पर राजद और कांग्रेस से लड़ी थी रालोसपा

पिछली बार रालोसपा एनडीए का हिस्सा थी। लेकिन इस बार वह महा-गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। 2015 में14 सीटों पर रालोसपा का मुकाबला राजद और कांग्रेस के साथ हुआ था। जिसमें से सिर्फ दो सीटों पर रालोसपा को जीत मिली थी।

पिछले चुनाव में 8 सीटें ऐसी थीं जहां हार-जीत का अंतर एक हजार से भी कम था। इनमें से तीन राजद को, तीन भाजपा को और एक-एक जदयू और सीपीआई को मिली थी। तरारी सीट पर जीत-हार का अंतर 272 तो चनपटिया सीट पर सिर्फ 464 वोट का अंतर था।

अगर हम पिछले कुछ चुनावों को देखें तो कई दिलचस्प आंकड़े सामने आते हैं। कई ऐसी सीटें हैं जहां एक ही पार्टी लंबे समय से चुनाव जीत रही है तो कई ऐसी सीटें हैं जहां लंबे वक्त से किसी पार्टी को जीत नसीब नहीं हुई है।

21 सीटों पर भाजपा 15 या उससे ज्यादा साल से लगातार जीत रही है

कुम्हरार, बनमनखी और गया टाउन, ये तीन सीटें भाजपा की गढ़ रही हैं। यहां भाजपा 1990 से चुनाव जीत रही है। वहीं बांकीपुर, दानापुर और पटना साहिब सीट पर भाजपा 1995 से जीत रही है। रामनगर, हाजीपुर, चनपटिया और रक्सौल सीट पर भाजपा 2000 से हारी नहीं है। इसके अलावा 11 ऐसी सीटें जहां भाजपा 2005 से लगातार जीत रही है। इस तरह कुल 243 सीटों में 21 पर भाजपा 15 या उससे ज्यादा साल से लगातार जीत रही है।

जदयू की बात करें तो वह 17 सीटों पर 2005 से लगातार चुनाव जीत रही है। इनमें लौकहा, त्रिवेणीगंज,जोकिहाट,सिंघेश्वर और महाराजगंज जैसी सीटें शामिल हैं। हालांकि आंकड़ों के इस मुकाबले में कांग्रेस और राजद के हिस्से में कुछ खास नहीं है। कांग्रेस सिर्फ एक सीट (बहादुरगंज) पर तो राजद दरभंगा ग्रामीण और मनेर सीट पर 2005 से जीत रही है।

इन आंकड़ों को देखें तो 28 सीटों पर भाजपा-जदयू लगातार 15 साल से जीतती आ रही है। इनमें से पिछली बार 10 सीटों पर दोनों आमने-सामने थीं। जिसमें से 3 पर भाजपा और 7 सीटों पर जदयू को जीत मिली थी।

बिहार चुनाव संबंधी ये खबरें भी आप पढ़ सकते हैं :

1. इस बार, मास्क की बहार / भाजपा ने सुशांत राजपूत की फोटो वाले 30 हजार मास्क बांटे, लोजपा ने बिहारी फर्स्ट वाले दो लाख मास्क बनाने का ऑर्डर दिया

2. बिहार में वर्चुअल कैंपेन:भाजपा के हर बूथ पर वॉट्सऐप प्रमुख, राजद जमीन से ज्यादा ट्विटर पर; कांग्रेस की डिजिटल मेंबरशिप और नीतीश के रथ पर पेनड्राइव में भाषण

3. 15 साल में कितना बदला बिहार / जीडीपी 7 गुना और बजट आठ गुना बढ़ा, लेकिन सबसे पांच गरीब राज्यों में आज भी शामिल, इस दौरान 2.6 गुना अपराध भी बढ़ा

4. बिहार में वोटिंग बढ़ी तो सरकार को फायदा / पिछले 20 साल में पांच बार विधानसभा के चुनाव हुए; तीन बार सीएम बदले, 6 बार नीतीश ने शपथ ली



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू महागठबंधन का हिस्सा थी और लोजपा एनडीए का। इस बार तीनों दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले हैं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/32DGnW8
बिहार में 2015 के पहले जदयू बड़े भाई की भूमिका में होती थी, लेकिन इस बार भाजपा छोटे भाई की भूमिका में रहना नहीं चाहती https://ift.tt/2ZN153M Reviewed by Ranjit Updates on September 18, 2020 Rating: 5

No comments:

Please don't tag any Spam link in comment box

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner