Top Ad unit 728 × 90

Breaking News

random

राहुल गांधी जरा पढ़े-लिखे, अनुभवी नेताओं और बुद्धिजीवियों से सतत मार्गदर्शन लें और अच्छा भाषण देना सीखें तो शायद कांग्रेस बच जाए https://ift.tt/2Qz6SVD

इस बार कांग्रेस की कार्यसमिति से बहुत आशाएं थीं, लेकिन खोदा पहाड़ और उसमें चुहिया भी नहीं निकली। सारी बैठक में इसी मुद्दे पर सात घंटे बहस होती रही कि 23 नेताओं ने यह बैठक बुलाने की मांग क्यों की? जिन्होंने कांग्रेस की दशा सुधारने के लिए सोनिया गांधी को चिट्‌ठी लिखी थी, वे बेचारे अपना बचाव करते रहे।

चिट्‌ठी लिखनेवालों में ज्यादातर कौन थे? उनमें सेवा-निवृत्त होने वाले राज्यसभा सदस्य, पूर्व मंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व प्रांताध्यक्ष आदि थे। यानी वे लोग जो सोनिया परिवार के कभी कृपा-पात्र रह चुके हैं और अब वे सूखे पत्तों की तरह कांग्रेस के पेड़ पर टंगे हुए हैं।

ये लोग क्या चाहते थे? ये चाहते थे कि कांग्रेस का अब कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष हो। सोनिया जी आजकल बीमार रहती हैं और राहुल का कहना है कि मैं फिर से अध्यक्ष नहीं बनना चाहता। ऐसी स्थिति में इस चिट्‌ठी का असली अर्थ क्या हुआ? यही न कि कोई सोनिया परिवार के बाहर का व्यक्ति अध्यक्ष बने।

इस पर राहुल ने पूछ लिया कि ऐसी चिट्‌ठी लिखने का क्या यही सही वक्त था? सोनिया जी अस्पताल में थीं और ये नेता लोग उन्हें चिटि्ठयां भेज रहे थे। इन नेताओं ने यह भी कहा था कि सरकार के कदमों की सही और कड़ी आलोचना करने का यह समय कांग्रेस चूक रही है। इस पर राहुल ने वार कर दिया कि इन 23 चिट्ठीबाज नेताओं की भाजपा के साथ मिलीभगत है।

इस पर राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद और पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल ने आपत्ति की तो कांग्रेस प्रवक्ता ने राहुल के बयान पर लीपा-पोती कर दी। इस कार्यसमिति ने असली मामले को अगली बैठक तक के लिए टाल दिया। यह अगली बैठक 6 माह बाद होगी या उसके भी बाद, कुछ पता नहीं।

लेकिन सोनिया गांधी ने अपने भाषण में परिपक्वता का परिचय दिया और उन्होंने चिट्‌ठी भेजनेवाले नेताओं के प्रति स्नेहपूर्ण शब्द कहे। इस बैठक में जो पांच प्रस्ताव पारित हुए हैं, वे सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तारीफ में हैं और ‘कई संकटों से घिरे’ वर्तमान भारत के बारे में हैं।

भारत कई संकटों से घिरा है या नहीं, लेकिन यह तय है कि कांग्रेस इस समय जैसे संकट में घिरी है, पिछले 135 साल के इतिहास में कभी नहीं घिरी। पिछली सौ-सवा सौ साल में कांग्रेस दर्जनों बार टूटी और बड़े-बड़े नेता उससे अलग हुए लेकिन वह हर बार यूनानी पक्षी फिनिक्स की तरह पुनर्जीवित होती रही है। लेकिन अब तो यह सवाल पैदा हो गया है कि कांग्रेस जिंदा भी रहेगी या नहीं?

कांग्रेस दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे पुरानी पार्टी है। भारत को आजाद कराने का श्रेय भी इसे ही दिया जाता है। आज यह पार्टी संसद और विधानसभाओं में बहुत सिकुड़ गई है लेकिन देश के हर जिले में आज भी इसका संगठन मौजूद है और यह देश की सबसे बड़ी विरोधी पार्टी है।

लेकिन डर यह लगता है कि 1885 में इस पार्टी का सृजन विदेश में जन्मे ए.ओ. ह्यूम ने किया था तो अब क्या इसका विसर्जन भी विदेश में जन्मीं सोनिया के हाथों ही होगा? यदि ऐसा हुआ तो यह भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्य होगा। सबल विपक्ष के बिना राज्यतंत्र वैसा ही हो जाता है, जैसे बिना ब्रेक की कार होती है।

आज कांग्रेस इतनी अधमरी हो गई है और उसके नेता इतने कमजोर हो गए हैं कि वे कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र को ही जीवित नहीं रख सकते, तो वे भारत के लोकतंत्र को कैसे जीवंत रख पाएंगे? जिन 23 नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष को पत्र लिखा था, उनमें से क्या किसी एक की भी हिम्मत हुई है कि जो बाल गंगाधर तिलक या सुभाषचंद्र बोस या आचार्य कृपलानी या डॉ लोहिया या जयप्रकाश या चंद्रशेखर की तरह बगावत का झंडा उठा सके? कांग्रेस में पिछले 50 साल से चल रहे परिवारवाद को चुनौती दे सके?

कार्यसमिति में जब ये पत्रप्रेषक नेता बोले तो इनकी घिग्घी बंधी हुई थी। अकेले राहुल गांधी ने इन सबकी हवा निकाल दी। इनमें से किसी की भी जड़ें जमीन में नहीं हैं। छत में हैं। ये सब उल्टे लटके हुए हैं। इनमें से किसकी हिम्मत है, जो कांग्रेस जैसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को लोकतांत्रिक बनाने की मांग कर सके।

कांग्रेस का यह रोग भारत में महामारी की तरह फैल गया है। यदि कांग्रेस मां-बेटा पार्टी बन गई है तो कोई पार्टी भाई-भाई पार्टी, कोई पति-पत्नी पार्टी, कोई बाप-बेटा पार्टी, कोई चाचा-भतीजा पार्टी और कोई बुआ-भतीजा पार्टी बन गई है।

यदि अगली कार्यसमिति की बैठक में कोई गैर-सोनिया परिवार के व्यक्ति को अध्यक्ष बना भी दिया गया तो वह देवकांत बरुआ ही तरह झुके रहेंगे? पी.वी. नरसिंहराव की तरह चतुर नेता बहुत कम हैं, जो वैतरणी में से भी अपनी नाव पार कर ले गए। सीताराम केसरी का हश्र हम सबने देखा।

अब या तो कांग्रेस में अध्यक्ष और कार्यसमिति की नियुक्ति खुले पार्टी-चुनाव के द्वारा हो या फिर राहुल ही दोबारा अध्यक्ष बनें। वे जरा पढ़े-लिखे, अनुभवी नेताओं और बुद्धिजीवियों से सतत मार्गदर्शन लें और अच्छा भाषण देना सीखें तो शायद कांग्रेस बच जाए। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
डॉ. वेदप्रताप वैदिक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3jh22IZ
राहुल गांधी जरा पढ़े-लिखे, अनुभवी नेताओं और बुद्धिजीवियों से सतत मार्गदर्शन लें और अच्छा भाषण देना सीखें तो शायद कांग्रेस बच जाए https://ift.tt/2Qz6SVD Reviewed by Ranjit Updates on August 27, 2020 Rating: 5

No comments:

Please don't tag any Spam link in comment box

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner